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अगर भारत की बात करें, तो इस रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का सीधा असर भारत के शहरों पर पड़ेगा। देश के तटीय शहरों में मुंबई, चेन्नई, गोवा, विशाखापत्तनम के साथ ही ओडिशा के तटीय इलाकों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण निचले इलाके जलमग्न हो जाएंगे। समुद्र के 0.8 डिग्री गर्म हो जाने से चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ गई है और वे और उग्र होकर बार-बार आने लगे हैं, जिसका असर इन तटीय शहरों के नागरिकों के जीवन पर सीधे पड़ रहा है।
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विस्तार
वैश्विक तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में तीव्र, गहन और निरंतर कमी लाए जाने की जरूरत है। जलवायु परिवर्तन पर इंटर गवर्मेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की ताजा रिपोर्ट पूरी दुनिया और खासकर एशियाई देशों के लिए एक चेतावनी है कि अब भी समय है, जाग जाओ, इसके बाद वक्त नहीं बचेगा।
इसमें साफ तौर पर वैश्विक स्तर पर बढ़ते कार्बन उत्सर्जन और उसकी वजह से बदलती जलवायु के मानवता पर हो रहे असर का जिक्र है। इस रिपोर्ट में वैश्विक तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर गंभीर क्षति की आशंकाएं जताई गई हैं और कहा गया है कि चरम मौसम की घटनाएं जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट परिणाम हैं।
अगर भारत की बात करें, तो इस रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन का सीधा असर भारत के शहरों पर पड़ेगा। देश के तटीय शहरों में मुंबई, चेन्नई, गोवा, विशाखापत्तनम के साथ ही ओडिशा के तटीय इलाकों में समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण निचले इलाके जलमग्न हो जाएंगे। समुद्र के 0.8 डिग्री गर्म हो जाने से चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ गई है और वे और उग्र होकर बार-बार आने लगे हैं, जिसका असर इन तटीय शहरों के नागरिकों के जीवन पर सीधे पड़ रहा है।
देश के मैदानी शहरों जैसे दिल्ली, पटना, लखनऊ और हैदराबाद में जलवायु परिवर्तन के चलते गर्मी में जानलेवा गर्मी और सर्दी के मौसम में कड़ाके की सर्दी जैसी चरम मौसमी स्थितियां बन चुकी हैं। वहीं बरसात में इन शहरों में होने वाली बारिश से एक-दो दिन में ही बाढ़ आना आम बात होती जा रही है। हिमालय की गोद में बसे नगरों में ग्लेशियर की बर्फ पिघलने की रफ्तार में तेजी से कभी पानी की कमी, तो कभी बाढ़ जैसे पर्यावरणीय दुष्प्रभावों की वजह से स्थितियां ऐसी हो चुकी हैं, जिनकी भरपाई असंभव होगी।
इनमें चमौली जैसे हादसों की पुनरावृत्ति हो सकती है। यानी कुल मिलकर भारत के ज्यादातर शहरों में नगरीय जीवन दूभर होता जा रहा है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती के बिना निकट भविष्य में गर्मी और उमस मानव सहनशीलता की सीमा को पार कर जाएंगी। अगर कार्बन उत्सर्जन ऐसे ही होता रहा, तो ज्यादातर भारतीय शहरों पर संकट मंडराने लगेगा। फिलहाल भारत में शहरी आबादी में बढ़ोतरी की रफ्तार 35 फीसदी है।
अगले 15 वर्षों में यह रफ्तार 40 फीसदी हो जाएगी। यानी 2050 तक भारत की आधी आबादी जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से जूझ रही होगी। रिपोर्ट में वेट-बल्ब तापमान का जिक्र किया गया है, जो मूल रूप से तापमान रीडिंग की गणना करते समय गर्मी और उमस को भी जोड़कर देखता है। एक आम इंसान के लिए, 31 डिग्री सेल्सियस का वेट-बल्ब तापमान बेहद खतरनाक है।
अगर उत्सर्जन में वृद्धि जारी रही, तो लखनऊ और पटना जैसे शहर 35 डिग्री सेल्सियस के वेट-बल्ब तापमान तक पहुंच जाएंगे। इसके बाद भुवनेश्वर, चेन्नई, मुंबई, इंदौर और अहमदाबाद में वेट-बल्ब तापमान 32-34 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने का अनुमान है। कुल मिलाकर, असम, मेघालय, त्रिपुरा, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
सदी के अंत तक 4.5 से पांच करोड़ लोग जोखिम में होंगे। एडाप्टेशन या अनुकूलन उत्सर्जन में कटौती का विकल्प नहीं है। सभी देशों के पास अपने उत्सर्जन पर लगाम लगाकर इस दिशा में परिवर्तन लाने के लिए एक छोटा-सा मौका है। यह रिपोर्ट जलवायु प्रणालियों के विज्ञान और संसाधनों और लोगों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को स्थापित करने में अधिक सशक्त होगी।
यह रिपोर्ट पहली बार एक इंटरैक्टिव एटलस के साथ समर्थित है, जो निर्णय लेने वालों को परिदृश्य देखने में मदद करेगी। सीमित प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन, वनों की कटाई, पारिस्थितिकी तंत्र का क्षरण और विनाश, और प्रदूषण न केवल पारिस्थितिक तंत्र और लोगों के लिए खतरा पेश करते हैं, जो उन पर भरोसा करते हैं, बल्कि प्रकृति, समुदायों और व्यक्तियों की क्षमताओं को भी कम करते हैं। (-लेखक आईएसबी में भारती इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के शोध निदेशक हैं।)