Please enable javascript.Climate Change Impact on India per new IPCC Report: आईपीसीसी रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन का भारत पर असर

भारत के 50% हिस्‍से में जलवायु परिवर्तन लाएगा तबाही, संकट में देश के 40 करोड़ लोग: IPCC एक्सपर्ट

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Authored byशताक्षी अस्थाना | नवभारतटाइम्स.कॉम | 10 Aug 2021, 1:46 pm

IPCC की नई रिपोर्ट के मुताबिक हम इन एक्सट्रीम घटनाओं की तीव्रता, गंभीरता और संख्या में भविष्य में बढ़ोतरी देखेंगे। इससे भारत के लोगों पर भारी असर होगा, खासकर ऐसे 40 करोड़ लोगों पर जिनका रोजगार पर्यावरण से जुड़े संसाधनों पर निर्भर करता है।

जेनेवा
जलवायु परिवर्तन से धरती को होने वाले खतरे को साफ करती संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट सामने आ चुकी है। पहले की रिपोर्ट्स में जिन खतरों की आशंकाए जताई गई थीं, IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की ताजा रिपोर्ट से अब उन पर काफी हद तक मुहर लग चुकी है। यह भी साफ है कि बदतर होते हालात के पीछे इंसानों का हाथ है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि भारत के लिए नई रिपोर्ट कितनी चिंताजनक है?

IPCC की मौजूदा छठी असेसमेंट साइकल के लिए शहरों, सेटलमेंट और इन्फ्रास्ट्रक्चर और पहाड़ों के चैप्टर के लीड लेखक डॉ. अंजल प्रकाश ने नवभारत टाइम्स ऑनलाइन को बताया है कि भारत के करोड़ों लोगों को इसके कारण भारी संकट का सामना करना पड़ेगा। उनका मानना है कि जलवायु परिवर्तन को आज सिर्फ पर्यावरण के लिहाज से नहीं, रोजगार जैसे सेक्टर्स के साथ जोड़कर देखना चाहिए और इसके लिए नए मंत्रालय और कड़ी नीतियों को लागू किए बिना समाधान संभव नहीं है।

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सवाल: तापमान बढ़ने से हीटवेव का भारत पर क्या खतरा होगा?
भारत का 54% भूगोलिक हिस्सा arid (शुष्क) और सेमी-एरिड कंडीशन्स में आता है। नई रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्सर्जन के आधार पर हम अगले 10-20 साल में तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी पर पहुंच जाएंगे। यह भारत के लिए बुरी खबर है क्योंकि गर्मी बढ़ने का भारत के 50% हिस्से और ऐसे लोगों पर भारी प्रभाव पड़ेगा जिनका जीवन पर्यावरण पर सीधे निर्भर करता है। रिपोर्ट के मुताबिक इस गति से गर्मी बढ़ना मानव इतिहास में कम से कम 2000 साल में पहली बार देखा गया है।

सवाल: मूसलाधार बारिश, बाढ़, ग्लेशियर का पिघलना और सूखे जैसी आपदाएं भारत झेलता रहा है। इनकी तीव्रता और संख्या कितनी चिंताजनक हो सकती है?
IPCC की नई रिपोर्ट के मुताबिक हम इन एक्सट्रीम घटनाओं की तीव्रता, गंभीरता और संख्या में भविष्य में बढ़ोतरी देखेंगे। इससे भारत के लोगों पर भारी असर होगा, खासकर ऐसे 40 करोड़ लोगों पर जिनका रोजगार पर्यावरण से जुड़े संसाधनों पर निर्भर करता है।

सवाल: 21वीं सदी में तटीय इलाकों में समुद्र स्तर बढ़ेगा जिससे निचले इलाकों में बाढ़ का संकट गहराएगा। भारतीय प्रायद्वीप के लिए इससे कितना खतरा है?
समुद्र का वैश्विक औसतन स्तर 0.20 [0.15 से 0.25] m तक 1901 और 2018 के बीच बढ़ा है। 1901-1971 के बीच औसतन बढ़त 1.3 [0.6 से 2.1] mm प्रति वर्ष, 1971- 2006 के बीच 1.9 [0.8 to 2.9] mm प्रति वर्षऔर 2006- 2018 के बीच 3.7 [3.2 to 4.2] mm प्रतिवर्ष की दर से बढ़ी है। IPCC वैज्ञानिकों को विश्वास है कि अभी जैसे हालात हैं, अगर वैसे ही चलता रहा तो समुद्रस्तर और बढ़ेगा और 1900 के बाद से औसतन समुद्रस्तर का बढ़ना इससे 3000 पहले तक नहीं देखा गया था। भारत का तट 7500 मीटर लंबा है और इसके किनारे भारी आबादी रहती है जो मत्स्यपालन और पर्यटन जैसे रोजगार पर निर्भर है। ये यकीनन खतरे में हैं।

IPCC की असेसमेंट साइकल का हिस्सा हैं डॉ. अंजल प्रकाश

IPCC की असेसमेंट साइकल का हिस्सा हैं डॉ. अंजल प्रकाश


सवाल: इससे निपटने और बचने के लिए भारत की नीतिया कितनी पर्याप्त हैं?
भारत की नीतियां काफी अच्छी हैं। दिक्कत है इन्हें लागू करने में। अभी जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को पर्यावरण और वन मंत्रालय का ‘बैकयार्ड समूह‘ सुलझा रहा है। आज जलवायु परिवर्तन पर्यावरण या जंगलों से कहीं ज्यादा है, इस मुद्दे को अलग-अलग सेक्टर्स को समझना चाहिए जिससे इससे बचने और निपटने की कोशिशों को बैलेंस किया जा सके। हमें जलवायु परिवर्तन के लिए नया और अलग मंत्रालय चाहिए जो नई चुनौतियों के खिलाफ रणनीति बनाए और उनका सामना करे। ऐसा तब तक नहीं हो सकता जब तक क्लाइमेट चेंज पर्यावरण और वन मंत्रालय का बाहरी हिस्सा बना रहता है।

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सवाल: हमें समुद्र, ग्लेशियर और गर्मी- तीनों का खतरा है। तमाम कोशिशों के बाद भी भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग की जरूरत होगी, चाहे टेक्नॉलजी ट्रांसफर हो, वित्तीय समस्या हो या उनके खुद के कार्बन उत्सर्जन को कम करना। क्या हमें वह सहयोग मिला है?

नहीं, हमारे पास पर्याप्त अंतरराष्ट्रीय सहयोग नहीं है। मुझे चीजें तब तक बदलती नहीं दिखती हैं जब तक औद्योगिक उत्तर को वैश्विक दक्षिण से चुनौती नहीं मिलती। वैश्विक दक्षिण के देशों को साथ लाने और ऐसे देशों से समझौता करने में भारत एक वर्ल्ड लीडर की तरह है जो सबसे ज्यादा प्रदूषण करते हैं। वैश्विस सौर सहयोग इसका अच्छा उदाहरण है। हालांकि, पहले हमें अपने यहां चीजें सही करनी होंगी और वह तब होगा जब हम जलवायु परिवर्तन के असर से बचने और निपटने के लिए कड़े कदम उठाएं।

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सवाल: IPCC की रिपोर्ट कैसे तैयार होती है?
IPCC की रिपोर्ट्स को 5-7 साल के दौरान असेस किया जाता है। अभी छठा असेसमेंट चल रहा है और पूरी रिपोर्ट सल 2022 में आएगी। करीब 8 साल पहले एक रिपोर्ट आई थी। छठे हिस्से की पहली रिपोर्ट सामने आई है। इसके लिए सभी देश रजामंदी देते हैं जब इसकी वैज्ञानिक और नीतिगत सटीकता से संतुष्ट हो जाते हैं। IPCC के अंदर 3 समूह हैं। पहला क्लाइमेट सिस्टम और चेंज के फिजिकल विज्ञान को देखता है, दूसरा सामाजिक-आर्थिक और प्राकृतिक सिस्टम पर खतरे को समझता है और तीसरा इससे बचने के तरीके खोजता है।

(डॉ. अजंल प्रकाश इंडियन स्कूल ऑफ बिजनस में भारती इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक पॉलिसी के रिसर्च डायरेक्टर और अजंक्ट असोसिएट प्रफेसर हैं। वह पहले महासागरों और क्रायोस्फीयर पर आधारित IPCC की स्पेशल रिपोर्ट भी लिख चुके हैं।)
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